06 अक्तूबर 2011

विकृतियों के रावण को मारने के लिए शुचिता की शक्ति धारण करें


सभी धर्मों के द्वारा एक बात बड़े ही जोर-शोर से कही और समझाई जाती है कि इंसान का शरीर ही मरता है, उसकी आत्मा कभी नहीं मरती है। आत्मा के अमर-अजर होने का प्रमाण हमें पहले कभी मिला हो या न मिला हो किन्तु अब समझ में जरूर आ गया है। पूरा देश विगत कई दशकों से, कई सदियों से विजयादशमी का पर्व पूरे जोशोखरोश से मनाता रहा है और रावण का वध भी पूरे देश में प्रत्येक वर्ष होता रहा है।



अब देखिये न, प्रत्येक वर्ष पूरे देश में प्रत्येक नगर में, गांव में, कस्बे में रावण को जलाने का कार्य किया जाता है, इसके बाद भी देश भर में रावण के विविध रूप अपना सिर उठाये घूमते दिखाई पड़ते हैं। कहीं आतंकवाद के रूप में तो कहीं हिंसा के रूप में; कहीं जातिवाद के रूप में तो कहीं क्षेत्रवाद के रूप में; कहीं महिला हिंसा के रूप में तो कहीं कन्या भ्रूण हत्या के रूप में; कहीं भ्रष्टाचार के रूप में तो कहीं रिश्वतखोरी के रूप में। उसको जहां जैसा मौका मिला है उसने वैसा ही अपना रूप धारण करके देशवासियों को परेशान करना प्रारम्भ किया है।

यही वे स्थितियां हैं जो समझाती हैं कि आत्मा अमर-अजर है, यदि वाकई देह की मौत के साथ-साथ आत्मा की भी मृत्यु हो जाती तो जिस समय राम ने रावण को मारा था उसी समय उसी वास्तविक मौत हो गई होती। वह अपने विविध रूपों के साथ प्रत्येक कालखण्ड में देश में अराजकता की स्थिति को पैदा नहीं कर रहा होता। आत्मा की अमरता के कारण ही रावण प्रत्येक वर्ष अपना रूप बदल कर हमारे सामने आ खड़ा होता है और हम हैं कि विजयादशमी के दिन उसके पुतले को मार कर इस मृगमारीचिका में प्रसन्न रहते हैं कि हमने रावण को मार गिराया है। वास्तविकता में देखें तो रावण किसी भी वर्ष मरता नहीं है बल्कि वह तो साल दर साल और भी विकराल रूप धारण कर लेता है, साल दर साल वह अपार विध्वंसक शक्तियों को ग्रहण करके अपनी विनाशलीला को फैलाता रहता है।

हमारे प्रत्येक वर्ष रावण के पुतले को जलाने से, इसके बाद हर्षोल्लास मनाने से किसी भी प्रकार से कोई भला नहीं होने वाला। हमें संकल्प लेना पड़ेगा कि हम देश में फैले विकृतियों के रावणों को जलाने का, मारने का कार्य करें। अपने आपको चारित्रिक शुचिता की शक्ति से संवारें ताकि वर्तमान में गली-गली में, कूचे-कूचे में घूम-टहल रहे रावणों को मार सकें।



चित्र गूगल छवियों से साभार

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