09 सितंबर 2011

सरकारी नपुंसकता त्यागो और गुर्दे का दम-ख़म दिखाओ


क्षमा सहित, उन लोगों से जिन्हें हमारी भाषा इस बार खराब लगे, बुरी लगे। अब बहुत हो गया शालीनता से कहते सुनते, यह भी पता है कि इस आलेख का कोई असर हमारी सरकार पर नहीं पड़ने वाला पर अबकी बार यह सिर्फ हमारे ब्लॉग या फेसबुक पर ही टंगा नहीं रह जायेगा। अबकी इसको दिल्ली तक जाना होगा, बाद में हमारा हाल कुछ भी हो।

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नपुंसक सरकार में बैठे नपुंसक मंत्रियो, शायद अब एक के बाद एक इस तरह के विचार तुम्हारे पास तक आयेंगे क्योंकि अब हम ही नहीं वरन् सम्पूर्ण देश की जनता त्रस्त हो चुकी है आये दिन मरते रहने को। आये दिन होते बम धमाकों में, बस-रेल की दुर्घटनाओं में जो आतंकवादियों द्वारा अंजाम दी जाती हैं, मरने को सिर्फ आम आदमी ही मजबूर क्यों है? तुम किसी भी बम धमाके का शिकार नहीं होते हो? आखिर इसका कारण तुम्हारी उत्तम सुरक्षा व्यवस्था है। अरे! तो यह तो बताते जाओ कि इस सुरक्षा के कारण जिन्दा रह कर तुम देश को, देशवासियों को दे क्या रहे हो? अरे! यदि तुम भी हमारी तरह किसी दिन किसी बम धमाके में मर जाओगे तो देश का कौन सा नुकसान हो जायेगा?


चित्र गूगल छवियों से साभार


आतंकवादी घटनाओं पर तुम्हारा कोई नियंन्त्रण नहीं है और उस पर तुर्रा यह कि हर हमले को रोक पाना सम्भव नहीं, आसान नहीं। देखा जाये तो देह में गुर्दा हो और उस गुर्दे में दम हो साथ में कोई ठोस कदम उठाने की औकात हो तो सब कुछ आसान होता है, सब कुछ सम्भव होता है। भूल जाओ एक बार कि कोई मानवाधिकार नाम की चिडि़या भी होती है, भुला दो कि दया-अहिंसा-प्रेम के थोक विक्रेता सिर्फ और सिर्फ तुम ही हो, विश्व बंधुत्व जैसी नौटंकी को करना बन्द करके कुछ अमानवीय कदमों को कुछ सालों के लिए उठा लो फिर देखना आतंकवादी इस देश में घुसना तो दूर इधर देखने की भी हिम्मत नहीं करेंगे।

ठेठ भाषा में एक बात कही जाती है कि लला को सिर पर बिठाओगे तो वो कान में ही मूतेगा, तुमने भी यही किया और इसकी सजा हम क्यों भुगतें? सबूतों को एकत्र करने के नाम पर तमाम सारे आतंकवादी हमारे दामाद बने बैठे हैं और हम इंतजार कर रहे हैं कि कब हमारी सरकार का नपुंसकता दूर हो और वो इस सबूतों के आधार पर इन आतंकवादियों के बापों को सबक सिखा दे। कई बार तो लगता है कि इन आतंकवादियों के बाप जो भी हों सा हों पर वे तुम सबके भी बाप दिखाई देते हैं। यदि ऐसा नहीं है तो कोई ठोस कार्यवाही करने से क्यों डरते हो? क्यों तुम सबकी पैंट गीली-पीली दिखाई देती है?

माना कि अभी विश्व राजनीति में तुम सबकी इतनी औकात नहीं हो सकी है कि इन आतंकियों के बापों को सबक सिखा सको तो कम से कम इन पकड़े गये आतंकवादियों को तो उनकी औकात याद दिला सकते हो। इन सबको अब सबूतों के एकत्रण हेतु, किसी राजनैतिक दबाव के कारण पालने-पोसने की आवश्यकता नहीं है। एक पल को तमाम सारा आगा-पीछा भूल कर इन्हें सार्वजनिक रूप से वो सजा दो कि देखने वालों की तो छोड़ो सजा देने वालों के भी कलेजे कांप जायें। तब देखना कैसे तमाम सारे आतंकी हमलों को रोक पाना आसान होगा।

पकड़े जाने वाले आतंकवादी के दोनों हाथ काट कर बिना खाना-पानी के रहने दिया जाये। जैसे ही मरने जैसी हालत हो उसको फिर से इलाज आदि के द्वारा जिन्दा किया जाये और फिर से वही प्रक्रिया। तब तक ऐसा किया जाये जब तक कि उसे देखने वाले भी कांप न जायें।

आतंकी की देह में तमाम सारे घाव बनाकर उनमें नमक भरकर छोड़ दिया जाये। ऐसा उसके मरने तक और फिर जिन्दा करने के बाद मरने तक की हालत तक किया जाये।

निर्दोषों को मारने वालों के प्रति रहम कैसा, इनके शरीर को नीचे से काटना शुरू करना चाहिए और हर बार इलाज के बाद भी लगातार काटते रहना चाहिए।

अब देखना तुम सरकारी नपुंसकों की तो हवा ही खराब हो गई होगी पढ़ने वालों में भी तमाम सारे दया-करुणा के ठेकेदारों के दिल पसीज गये होंगे। वे अभी-अभी तुमसे पहले ही हमें नसीहतें देने आयेंगे भले ही किसी मरने वाले परिवार को सांत्वना देने न गये होंगे। हम तो कहते हैं कि मीडिया जो चैबीसों घंटे ज्योतिष, प्रेमालाप, सास-बहू में व्यस्त रहता है आतंकवादियों पर होने वाली इस क्रूरतम कार्यवाही को सम्पूर्ण विश्व में प्रसारित करे। यदि ऐसा हो सका तो हमें पूर्ण विश्वास है कि कहीं देर बम बना रहे आतंकवादी इस तरह के प्रसारण को देखकर अपने-अपने पैजामे तो गीले कर ही लेंगे।

अब इस बात की चर्चा न करने लगना कि इस तरह के लेख के बाद हम पर कौन सी कानूनी कार्यवाही की जा सकती है क्योंकि यह एक हमारा ही विचार नहीं सम्पूर्ण देश की विचारधारा है। अन्तर यह है कि हमने इसे लिखकर चिपका दिया है।

‘‘जय हिन्द, वन्देमातरम, इन्कलाब जिन्दाबाद।’’



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