09 मार्च 2011

अतिथि, तुम कब मौत पाओगे?




पिछले माह की समाप्ति के आते-आते कुछ ऐसे हालात बने कि नेट पर न तो अधिक आना हो सका और न ही कुछ विशेष लिखा जा सका। मन में विचार बहुत से उठ रहे थे पर कई बार होता है कि भागदौड़ के बाद बस इधर-उधर निगाह दौड़ाने की ही इच्छा होती रहती थी।

चित्र गूगल छवियों से साभार

आज भी शायद न लिखा जाता किन्तु शाम को अपने मित्र डॉ0 वीरेन्द्र सिंह यादव के घर पर बैठे थे। आजकल वे आतंकवाद पर केन्द्रित एक सेमिनार की तैयारियों में व्यस्त हैं। अपनी व्यस्तता के मध्य उनकी व्यस्तता को कुछ कम करने वहां उनके और भी सहयोगी बैठे हुए थे। सेमिनार का विषय आतंकवाद पर केन्द्रित है, चर्चा छिड़ी तो देश का आतिथ्य सुख भोग रहे अफजल पर, कसाब पर भी चर्चा छिड़ गई।

उधर लम्बी और गरमागरम बहस से निपट कर घर लौटे। इधर नेट पर आकर देखा तो अनिल पुसादकर भाई भीउसी तरह की बहस को छेड़े दिखे। उनकी पोस्ट को देखकर लगा कि शायद आज इन्हीं आतंकियों का दिन है जो हर ओर इन्हीं की बहस को छेड़े हुए है।

बहस तो होती ही रहेगी पर सवाल ये कि हमारी महामहिम जी के पास अफजल की दया याचिका किन कारणों से धूल खा रही है जबकि देशहित में इसे सर्वोपरि होना चाहिए था।

कसाब को कब तक मेहमानों की तरह से रखा जायेगा? क्या किसी विमान अपहरण का इंतजार है?

हमारे सवाल भी वही हैं जो एक आम भारतीय के हैं, आप सभी के हैं। इस कारण इस पोस्ट का विस्तार नहीं। कम लिखे में ज्यादा समझना। अपने मेहमानों की खातिर को देखते रहना।

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