24 नवंबर 2010

बिहार के चुनाव परिणामों से नेता कुछ सीख लें तो बेहतर रहेगा


बिहार चुनाव के परिणामों ने सभी को चौंका दिया। नेताओं को भी चौंकाया तो मीडिया को भी चौंका दिया। नेता इस कारण से चौंके क्योंकि किसी भी राजनैतिक दल ने यह नहीं सोचा था कि नीतीश कुमार इस तरह से सत्ता को हथिया लेंगे कि सभी का सूपड़ा साफ हो जायेगा।

मीडिया इस कारण से चौंका क्योंकि उसे विश्वास भी नहीं था कि भाजपा को इतनी सीटें मिल जायेंगीं। भाजपा को इतनी सीटें मिली देखकर अब मीडिया को कुछ कहते तो बन नहीं रहा है तो उसने दूसरा राग अलापना शुरू कर दिया है। लगभग सभी टीवी चैनलों पर दिखाया जा रहा है कि नीतीश के पास अब इतनी सीटें हैं कि वे कुछ और सदस्यों को मिला कर अकेले ही सरकार बनाने का दम रखते हैं।

अभी नीतीश कुमार ने खुलकर कुछ भी नहीं कहा है किन्तु मीडिया को भाजपा की सफलता पची नहीं और शुरू हो गया बेवजह का प्रचार।

बिहार में विकास की राजनीति को बल मिला है। इस जीत ने दिखा दिया है कि लोगों ने अब राजनीति का मुख्य एजेंडा जाति को पीछे छोड़कर विकास को अपनाने का प्रयास किया है। देखा जाये तो जाति समाज का एक प्रमुख अंग बन गया है। इसे न तो कोई समाप्त करना चाह रहा है और न ही यह समाप्त होता दिख रहा है।

इसके अलावा एक तथ्य और देखना चाहिए कि कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत लगा दी किन्तु नतीजा सिफर निकला। युवाओं के और दलितों के मसीहा बनकर उभरने की कोशिश करने वाले और तमाम तरह का नाटक करने वाले युवराज भी नाकाम रहे, मैडम भी नाकाम रहे।

इन नतीजों ने दिखा दिया कि जनता किसी न किसी रूप में अब जातिगत आधार से बचना चाहती है। जनता ने वर्तमान में बिहार में और उससे पहले गुजरात में, मध्यप्रदेश में सरकार को दोबारा बनवा कर दिखा दिया कि जनता विकास को देखती और महसूस करती है।

इनको सामने रखकर एक बात स्पष्ट रूप से याद रखना चाहिए जो नीतीश कुमार ने अपने एक संक्षिप्त साक्षात्कार में आईबीएन7 में कहा कि बिहार को विकास के रास्ते पर चलने दिया जाये। यह जनता की जीत है, उसने हमें निमित्त मात्र बनाया है।

ये परिणाम उन नेताओं को, राजनैतिक दलों को भी दिखने चाहिए जो अभी भी जातिगत राजनीति को विकास की राजनीति से ज्यादा श्रेष्ठ समझते हैं। यहां ध्यान रखना चाहिए कि अब ऐसा महसूस हो रहा है कि जनता भी विकास को चाहने लगी है कि जातिगत आधार को।


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