09 नवंबर 2010

जीत का रहेंगे -- कविता -- कुमारेन्द्र




इन आंखों ने सीखा है सपने सजाना,
सपने हकीकत में बदल कर रहेंगे।
हो दूर कितना भी आसमान हमसे,
सितारों को जमीं पर सजाकर रहेंगे।

राही सफर में तो मिलते बहुत हैं,
कोई साथ देगा कब तक हमारा।
अलग अपनी मंजिल जुदा अपनी राहें,
हमें खुद बनना है अपना सहारा।
हमीं से है रोशन ये गुलशन सारा,
नहीं खुद को तन्हा हम समझा करेंगे।

नहीं हैं बुजदिल कि डर करके बैठें,
तूफान से लड़ने की ठान के निकले।
लेकर उमंग और चाहत इस दिल में,
झुकाने हम सिर पर्वत का निकले।
कितना भी हो जाये वक्त दुश्मन हमारा,
नहीं हम हालात से डर कर रहेंगे।

नहीं तुम हमारे कदमों को रोको,
अभी हमको है बहुत दूर जाना।
कदम डगमगाये तो होगी मुश्किल,
अभी है बहुत दूर हमसे ठिकाना।
बदल जाये मौसम बदल जायें राहें,
ये कदम फिर भी मंजिल को छूकर रहेंगे।


चित्र गूगल छवियों से साभार

विशेष-चुनाव की भागदौड़ के बीच देखा, ये हमारी 495 वीं पोस्ट हैअब जल्दी से जल्दी 500 का आंकड़ा छूना है

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