10 अप्रैल 2010

आतंकवाद, नक्सलवाद, क्षेत्रवाद --- देश की तीन उत्पाती सेवाएँ




नक्सलवाद, आतंकवाद, क्षेत्रवाद के साथ ही बहुत बार मन में सवाल उठे कि क्या कभी ये सब देश से समाप्त भी होगा?

यह एक ऐसा प्रश्न है जिस पर किसी का भी ध्यान जाता है किन्तु इसके जवाब का बस इंतजार ही करता रहता है। होना तो यह चाहिए कि इस तरह के विवादों के मूल को खोजा जाये और फिर उनका समाधान किया जाये। हमारी राजनीतिक व्यवस्था इसके ठीक उलटा काम करती है। वह समस्या के ऊपरी भाग को समाप्त कर उसके मूल की समाप्ति की बात स्वीकार लेती है।

नक्सलवाद हमारे देश में एकाएक नहीं बढ़ गया, आतंकवाद का भी विस्तार अचानक नहीं हुआ और यदि इनके परिणामों को देखकर क्षेत्रवाद को भी नहीं रोका गया तो वह दिन दूर नहीं जब इस समस्या से भी जनता को सरकारों को दो-चार होना पड़ेगा। नक्सलवाद और आतंकवाद की शुरुआत कुछ स्वार्थपूर्ति के कारण हुई जिसे समय-समय पर हवा देकर चर्चा में बनाये रखा गया।


आज जब हालात हमारी पहुँच से बाहर हो चुके हैं तो हम इसके परिणामों की चर्चा कर उनके समाधान की बात खोज रहे हैं। एक पल को यदि विचार किया जाये तो आपको क्या लगता है कि करोड़ों रुपये के बजट वाले ऐसे संगठन अब किसी गरीब के हित के लिए संघर्ष कर रहे हैं? किसी धर्म, मजहब के लिए लड़ाई कर रहे हैं? किसी क्षेत्र में अपने अस्तित्व, व्यक्तित्व के लिए लड़ रहे हैं?

ऐसा कदापि प्रतीत नहीं होता कि इन संगठनों की मंशा स्वयं को अथवा उससे जुड़े लोगों को लाभ पहुँचाने की है। हमारी नजर में ये वे संगठन हैं जो किसी मजबूरी के कारण भले ही बनते हों किन्तु ताकत और धन का उपयोग और उसका वर्चस्व देखकर ये बजाय अपने अधिकारों के स्वार्थसिद्धि के लिए उसका प्रयोग करने लगते हैं। आखिर सत्ता सुख किसे बुरा लगता है? धन का सुख किसे बुरा लगता है? यहाँ भी अपने तरह की एक अलग राजनीति चलती रहती है। इस राजनीति में देश की राजनीति करने वाले भी कहीं गहरे तक जुड़े होते हैं।

इन दो वादों को याद करते हुए महाराष्ट्र में चलाये जा रहे क्षेत्रवाद को भी ध्यान रखना होगा क्योंकि यही वे स्थितियाँ हैं जिन पर नियंत्रण नहीं रखा गया तो कल को क्षेत्रवाद भी देश के लिए घातक रूप ले लेगा।





(चित्र गूगल छवियों से साभार)