03 मार्च 2010

आइये, मिल कर बचाओ-बचाओ खेलते हैं

आजकल बचाओ-बचाओ की आवाज रोज ही सुनाई दे रही है। कभी बाघों को बचाने की आवाज, कभी पेपर बचाने की आवाज, कभी गैस बचाने की आवाज, कभी पर्यावरण को बचाने की आवाज, कभी पानी बचाओ की आवाज, कभी बेटी बचाओ की आवाज.......................। हर तरह से बचाने का काम चल भी रहा है। लेख लिखे जा रहे हैं, मैसेज किये जा रहे हैं, ब्लाग लिखने के शौकीन हैं तो पोस्ट दे मारिये, कुछ नहीं कर सकते तो गोष्ठी का आयोजन कर डालिये और दे डालिये बढ़िया सी बचाओ घुट्टी।

इधर कुछ न कुछ बचाओ के बाद याद आया कि देश बचाओ की गुंजाइश है अभी। अब जब गुंजाइश है तो क्यों न इसी पर काम कर लिया जाये। फिर ख्याल आया कि इस बचाओ के खेल में मिलेगा क्या?



जो बाघ बचाने निकले वे भले ही बाघ बचा पायें या नहीं पर अपने आपको सबके सामने तो ला सके हैं। कुछ हैं जो कह रहे हैं मोबाइल का इस्तेमाल अधिक से अधिक करें और पेपर बचाओ; कुछ का कहना है कि पानी बचाओ। इस बचाओ में हमारे एक मित्र ने व्यंग्य किया कि यदि पेपर और पानी दोनों बचाने की मुहिम शुरू कर दी गई तो सबेरे-सबेरे बड़ी दिक्कत हो जायेगी।

यह व्यंग्य सबेरे के इस्तेमाल पर कागज, पानी पर नहीं वरन् हमारी व्यवस्था पर है। हम पहले तो अधिक से अधिक दोहन करते हैं और फिर उसके बचाने की आवाज लगाने शुरू कर देते हैं। अब देखो हमने पृथ्वी को तो नष्ट कर ही डाला अब किसे नष्ट करें तो मंगल और चाँद की तरफ अपने कदम बढ़ा दिये। अब बेचारे दोनो मनुष्यों की मार मरेंगे और बाद में कई दशकों के बाद हम आवाज लगायेंगे मंगल बचाओ, चन्द्रमा बचाओ।

हाँ जी बात हो रही थी बाघ बचाने की, चलिए हम तैयार हैं। ‘‘भाइयो, बहिनो..........अरे! नहीं, भाई, बहिन तो शिकार करते ही नहीं फिर? हाँ, प्रिय शिकारियो, देश में बाघों की संख्या मात्र 1411 रह गई है। अब आप लोग बाघों का शिकार करना बन्द कर दो। आप लोग ऐसा करोगे तो बाघ किसी दिन समाप्त हो जायेंगे और हमारे बच्चे चिड़ियाघर में, सर्कस में किसे देखेंगे?’’

इतने से काम चलेगा या और कहें? आँकड़े भी दें? कहाँ-कहाँ बाघ बचे हैं, ये भी देना है? किस-किस क्षेत्र में अधिक शिकार होता है, ये भी दें? ऐसा है कि हम पहली बार बाघों को बचाने का प्रयास कर रहे हैं, इस कारण यह पता नहीं है कि कैसे बचायेंगे, तभी आप लोगों से पूछ रहे हैं।


अब किसे बचाना है? पेड़ को, चलो बचायें.........फिर भाषणबाजी करनी है? इसके लिए कुर्सी को त्यागना होगा, जिस मेज पर कम्प्यूटर रखा है उसे हटाना होगा, जिस पलंग पर सोते हैं उसे हटाना होगा। चलो आपका कहा मानकर सब कुछ लोहे का बनवा लेते हैं तो कल को आप ही कहोगे कि लोहा बचाओ।

पेपर कैसे बचाया जाये ये भी तो बताते जाओ? पुस्तकें बन्द करवा दो क्योंकि पढ़ाई-लिखाई का कोई महत्व तो रह नहीं गया है। कम्प्यूटर पर पढ़ाई कराओ और सीडी, पेन ड्राइव पर प्रश्न-पत्र हल करवा दो। वैसे भी आज की व्यवस्था में गरीब को तो पढ़ पाना नहीं है और अमीर के बच्चे वे चाहे कम्प्यूटर पर पढ़ें या फिर कागज पर, उनके लिए तो बात बराबर ही है।

और क्या बचा?????????? अरे! बेटी की बात तो रह ही गई? उफ! ये क्या कह बैठे? ये भी कोई विषय है बचाने लायक? क्या करोगे बचाकर? किसको लाभ है बेटी के बचाने से? दूसरी बात करो, किसी और को बचाने की चर्चा करो। जिसे बेटी की जरूरत होगी वा किसी न किसी तरह बचा ही लेगा, हम क्यों अपना दिमाग खर्च करें? अब देखो हमें पानी की जरूरत होती है तो हम बचा लेते हैं कि नहीं। बढ़ती मंहगाई में हमने पैसे, गैस, सब्जी, राशन बचाकर दिखाया कि नहीं और तो और आप देखो हम सरकार की नजर में धूल झोंक कर इनकम टैक्स तक बचा लेते हैं।

इनको बचाने की जरूरत थी हमें, सा बचा लिया। इसी तरह जिसे बेटी की जरूरत होगी वो बचा ही लेगा, आप बिलावजह परेशान हो रहे हैं।

चलिए अभी बचाने लायक इतना ही दिखा। आपको कुछ और दिखे बचाने लायक तो बताइयेगा सिवाय बेटी और देश बचाने के। तब तक हम भी कुछ नया विषय देखते हैं, मुद्दा देखते हैं जिसको बचाने की आवाज लगा कर अपनी राजनीति को, अपनी प्रचार कम्पनी को चमकाया जा सकता हो। तब तक बचाओ....बचाओ...बचाओ।

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चित्र गूगल छवियों से साभार

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