31 मार्च 2010

ब्लोगिंग में भी क्लोजिंग करना पड़ेगी कुछ नया करने के लिए




आइये कुछ पल विवादों के घेरे से निकल कर मार्च के अन्तिम चरण को भी देख लें। मार्च का महीना और क्लोजिंग जैसे शब्द का सबसे रूबरू होना। वे लोग विशेष रूप से इस शब्द से रूबरू होते हैं जो किसी सरकारी विभाग में कार्यरत हैं।


क्लोजिंग जैसे शब्द में एक प्रकार की अजब सी अनुभूति दिखाई देती है, सब कुछ समाप्त कर देने जैसी। जो है उसे भी मिटाना है और जो नहीं भी है उसे भी मिटाना है। हमारे विभागों की बाबू कौम बड़ी ही माहिर होती है क्लोजिंग को क्लोज करने में। आपका कुछ बचा खुचा निकलना है तो इस बाबू को पकड़ो, इस क्लोजिंग की आपाधापी में सब हो जायेगा।

लगे हाथ हमने भी सोचा कि क्लोजिंग के इस मार्चपास्ट में ब्लाग संसार की क्लोजिंग को देखा जाये। देखा और बस देखते ही रह गये। क्या कहें, हम कोई ऑडिटर तो हैं नहीं पर फिर भी।

अभी कुछ समय पहले हमने कुछ सवाल उठाये थे जिज्ञासु महिलाओं से, कुछ वास्तविक कार्यशील महिलाओं से सम्बन्धित। बस, नाप दिया गया था हमें ऊपर से नीचे तक, कि क्या अधिकार है हमें सवाल पूछने का? किस-किस को जवाब देते फिरेंगे? आदि-आदि। हम भी अपने आपको नपवा कर सिसियाए से खड़े रह गये।

अभी क्लोजिंग के मौसम में क्या देखा कि महिलाओं ने ही सवाल खड़े कर दिये महिलाओं के ऊपर निगाह रखने वालों से। कैसे की शादी? दहेज लिया या नहीं, मर्जी किसकी थी, किसकी नहीं? आदि-आदि। हम फिर सकपकाये, कि ये लो अब तो और भी हंगामा होगा। जवाब दो तो फँसे और न दो तो भी फँसे। बिलकुल भाजपा जैसी, 6 दिसम्बर को कुछ न किया तो मीडिया ने तमाशा कर दिया कि भाजपा ने पलटी मार दी है और कुछ कर दिया तो आरोप कि भाजपा साम्प्रदायिक है।

अब कोई पूछे कि क्या अधिकार है इस तरह के सवालों को पूछने का? क्या होगा ऐसे सवालों के जवाब पाने से? क्या पुरुष को सदैव महिलाओं के सवालों के घेरे में आना पड़ेगा? (माँ और पत्नी के बीच पिसते पुरुषों की व्यथा को सुनो तो पता चले) बुराई करना आसान है पर उसे सुधारना उतना ही कठिन है।

क्लोजिंग के इस मौसम में हम भी विचार कर रहे हैं ब्लाग के वर्तमान स्वरूप के लेखन को क्लोज करके कुछ नया सा करने की क्योंकि जो सोच कर ब्लाग पर आये थे, वो मिला नहीं सो अब लेखन से बोरियत सी होती जा रही है। इससे बचने का तरीका है कि पिछले को क्लोज करके नये रूप में कुछ नया शुरू किया जाये, जो स्वयं को पसंद हो। क्लोजिंग में व्यस्तता तो होगी ही पर लेखन तो चालू रहेगा (कमीशन कभी बन्द हुआ है?)




चित्र गूगल छवियों से साभार