09 नवंबर 2009

माँ की बात मानते लड़कों को पसंद नहीं करतीं हैं लड़कियां???

कल रात पढ़ने के लिए बैठे तो कमरे में टी0वी0 पर आधुनिक भारत का विवाह सम्बन्धी कार्यक्रम या कहें कि भारत का आधुनिक विवाह सम्बन्धी कार्यक्रम देखा जा रहा था। कार्यक्रम के माध्यम से परफेक्ट ब्राइड को चुना जाना है। पढ़ने से ज्यादा लिखना हो रहा था इस कारण टी0वी0 के शोर से किसी तरह की बाधा उत्पन्न नहीं हो रही थी।

बाधा हमने स्वयं ही उत्पन्न की जब दिमाग ने लिखने वाली सामग्री से ध्यान हटाकर आधुनिक भारत के आधुनिक विवाहों के ऊपर लगाया। समाजशास्त्र के अध्ययन में विवाह के प्रकार पढ़ रखे थे। (इस बारे में बाद में) हमारे दिमाग ने कहा कि अब तो समाजशास्त्रीय परिभाषाओं से अलग हटकर भी विवाह हो रहे हैं, इन्हें क्या नाम दिया जायेगा?

दिमाग ने अलग विवाह के चलन का संकेत भेजा और हमने तुरन्त अपनी मेहनत करने के स्थान पर दिमाग को ही काम सौंपा ऐसे विवाहों के बारे में पता लगाने का। तुरन्त जवाब मिला, एक विवाह (अभी हुआ नहीं है) स्वयंवर के माध्यम से हुआ राखी सावंत का। दूसरा होने जा रहा था, पता नहीं हुआ कि नहीं, राहुल महाजन का। इन दो के कार्यक्रम को तो स्वयंवर की श्रेणी में रखा जा सकता है किन्तु कल रात जिस वैवाहिक कार्यक्रम को सुना (देख नहीं रहे थे) उसे समझ नहीं आया कि वाकई क्या नाम दिया जाये?

कुछ लड़कियाँ, कुछ लड़के, लड़कियों-लड़कों की मम्मियाँ और खेल शुरू, शादी-शादी। सवाल ये नहीं कि क्या कार्यक्रम है, क्या होना चाहिए, क्या विवाह है, कैसा होना चाहिए आदि-आदि। माथा तो तब ठनका जब कान में एक वाक्य घुसा कि फलां लड़के को (नाम याद नहीं) इस कारण कोई लड़की नहीं मिल सकी क्योंकि वो हर बात में अपनी माँ को महत्व देता है।

अब माथा ठनका तो पलटकर भी देखा (अबकी कार्यक्रम थोड़ा सा देखा) रिश्तों के पारखी भी बैठे थे (अरे भाई! कार्यक्रम विचित्र है तो जजों को जज कैसे कह दें, नाम भी विचित्र देंगे) उनमें से एक मलायका अरोरा थीं बोलीं कि आज की लड़कियों को बहुत ही अटपटा लगता है जब कोई लड़का उससे ज्यादा माँ को महत्व देता दिखता है। (हो सकता है कि शब्दों में कोई हेरफेर हो किन्तु भाव यही थे, क्षमा करेंगीं मलायका जी)

लगा कि ये कार्यक्रम भारत का आधुनिक विवाह नहीं है बल्कि वाकई आधुनिक भारत का विवाह कार्यक्रम है। जिस समाज में माँ से अधिक महत्व उस लड़की को दिया जाये जो अभी पत्नी भी नहीं बनी है या फिर ऐसी लड़की जो अभी पत्नी भी नहीं बनी है और माँ के नाम से ही अटपटा महसूस करती हो, उस समाज को आधुनिक के स्थान पर और क्या कहा जायेगा?

एक घटना तुरन्त याद आई उसे कह कर अपनी बात समाप्त करते हैं क्योंकि कितना भी समझाइये होगा वही ढाक के तीन पात।

घटना ये है कि महाविद्यालय के विद्यार्थियों के एक कार्यक्रम में दो साल पहले जाना हुआ। वहाँ एक प्रोफेसर साहब ने उनसे सवाल किया कि एक नाव में आप, आपकी माता और आपकी पत्नी जा रहे हों। नाव में किसी तरह से पानी भरने लगता है और किसी एक को नाव से उतार देने पर नाव डूबने से बच जायेगी तो आप किसे नाव से कूदने को कहेंगे?

इस पर कई जवाब मिले किन्तु एक जवाब ने चैंकाया कि हम भारत में ही रह रहे या कहीं और, जवाब था कि माता को क्योंकि माता अब बूढ़ी हो गईं हैं कितने साल जिन्दा रहेंगीं।


वाकई हम इक्कीसवीं सदी में आ गये हैं जहाँ माँ नाम के इन्सान को अब आउटडेटेड समझ कर हाशिये पर खड़ा किया जा रहा है। भला हो ऐसे समाज का, ऐसे नवजवानों का, ऐसी सोच का।

3 टिप्‍पणियां:

  1. "अब वो दिन हवा हुए जब पसीना भी गुलाब सा महकता था"....हा....हा...हा....कुमारेन्द्र जी पसीने और गुलाब को अपनी जगह रहने दीजिये और सिर्फ नज़्म देखिये ......!!

    वाकई हम इक्कीसवीं सदी में आ गये हैं जहाँ माँ नाम के इन्सान को अब आउटडेटेड समझ कर हाशिये पर खड़ा किया जा रहा है। भला हो ऐसे समाज का, ऐसे नवजवानों का, ऐसी सोच का...

    कुमारेन्द्र जी इस जहां में हर सोच के इंसान होते हैं ....ये तो माँ -बाप का फ़र्ज़ है आप बच्ची में किस प्रकार के संस्कार डालते हैं ....!!

    जवाब देंहटाएं
  2. सही लिखा आपने, ऐसे कार्यक्रमों से यही सीखने को मिलेगा.
    समाज की धरना बदल रही है, इस कारण परिवार का स्वरुप भी बदल रहा है.

    जवाब देंहटाएं