11 सितंबर 2009

सरकारी मशीनरी वाले मशीन होते हैं?


इतनी शिक्षा प्राप्त कर ली है कि कहा जा सकता है कि हम बड़े हो गये हैं। ये बात और है कि बड़ों के लिए हम छोटे ही हैं और हो सकता है कि बहुत सारे विषयों में हम छोटे हों भी। इसके बाद भी कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में कुछ तो अनुभव प्राप्त कर ही चुके हैं।
अपने इसी अनुभव के आधार पर कभी कभी मन में विचार आता है कि क्या सरकारी मशीनरी सिर्फ और सिर्फ मशीनरी ही होती है? क्या इसके सोचने समझने की क्षमता समाप्त हो जाती है या फिर जानबूझ कर ऐसा किया जाता है? विशेष रूप से प्रशासन से जुड़े लोगों के साथ।
सवाल इस कारण उपजा कि आज शाम को खाली समय में बैठे बैठे टीवी पर समाचार देख रहे थे। उत्तर प्रदेश में चल रहे समाजवादी पार्टी के आन्दोलन की खबर आ रही थी। लगभग हर जगह से पुलिस वालों द्वारा लाठीचार्ज करने के समाचार थे। जो क्लिप्स दिखाई जा रहीं थीं उन्हें देखकर लग रहा था कि पुलिसकर्मियों द्वारा बेझिझक लाठियों की मार की जा रही है।

अब सवाल ये नहीं कि सरकार बसपा की है और आन्दोलन सपा का है तो लाठीचार्ज होना ही था। सवाल ये है कि आज बसपा है तो ये अन्य दूसरे दलों पर लाठीचार्ज करते हैं, कल को दूसरी सरकार बनेगी तो ये उस दल वालों को छोड़ अन्य पर लाठीचार्ज करेंगे। आज जो पिट रहे हैं कल उन्हें सलाम बजाया जायेगा।
समझ नहीं आता कि ये क्या है? इसके अलावा एक बात ये तो समझ में आती है कि कानून व्यवस्था को तोड़ने वाला कोई भी हो उसको रोकना ही होगा। अब इसके लिए हो सकता है कि कभी कभी बल प्रयोग भी करना पड़े। पर यदि आन्दोलन करने वाले खामोश हैं, शान्ति से एक स्थान पर बैठे हैं, किसी तरह के कानून का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं तब लाठीचार्ज करने की क्या आवश्यकता?
ये बात इस कारण हमारे दिमाग में आई शायद 1995 की या 1996 की बात होगी। उस समय लखनऊ जीपीओ पर महात्मा गाँधी की मूर्ति के नीचे अंधे लड़के शान्ति से बैठे सरकार से अपनी कुछ माँगों को लेकर धरना दे रहे थे। अचानक पुलिस अधिकारियों से हो रही बातचीत के बीच में ही उन अंधे लड़कों पर लाठीचार्ज होने लगता है। भाग पाने, देख पाने से बेबस वे लड़के बस एक दूसरे का हाथ थामे इधर उधर भागने की नाकाम कोशिश करते रहे और पिटते रहे।
इस घटना को जिसने भी देखा वह बिना आंसू बहाये नहीं रहा। आज भी जब वह घटना याद आ जाती है तो अपने आप आँखों में आँसू आ जाते हैं। सोच यहीं आकर ठहर जाती है कि क्या वाकई सरकारी मशीनरी मशीन की तरह है जो सिर्फ आदेश का पालन करना जानती है बिना ये देखे कि पिटने वाला बच्चा है, अंधा, अपाहिज है, महिला है, बुजुर्ग है।
देखियेगा आजकल सपा के आन्दोलन में जो पुलिसकर्मी उन पर लाठी भाँजते दिख रहे हैं कभी सपा के सरकार में आते ही सलाम ठोंकते नजर आयेंगे। वाह रे देशी अंग्रेजी शासन।

6 टिप्‍पणियां:

  1. वाकई देशी अंग्रेजी शासन कहना ही बेहतर है.

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  2. आपकी लेखन शैली का कायल हूँ. बधाई.

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  3. इस शासन पर कोई कमेंट नहीं, लेकिन आपकी लेखनी बहुत धारदार है ..हैपी ब्लॉगिंग

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  4. समाचार पत्र -----राष्ट्र समिधा
    राष्ट्र समिधा नाम से मेने एक समाचार पत्र (पाक्षिक) की शुरुआत की है। नवम्बर माह के पहले सप्ताह में इसका पहला अंक निकलेगा। आप सभी से प्रार्थना है की आप हमारे समाचार पत्र को अपने लेख व सुझाव भेजे। साथ में अपना पता,दूरभाष व ईमेल लिखें।
    मेरी ईमेल आइ० डी0 naveenatrey@gmail.in है। आप इस पते पर अपने लेख भेज सकते है।

    अग्रिम धन्यवाद सहित -------नवीन त्यागी

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    मेरी ईमेल आइ० डी0 naveenatrey@gmail.in है। आप इस पते पर अपने लेख भेज सकते है।

    अग्रिम धन्यवाद सहित -------नवीन त्यागी

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