25 अगस्त 2009

सवाल....सवाल और बस सवाल....???


पिछले कुछ दिनों से पता नहीं क्यों मन किसी भी काम में नहीं लग रहा था। इसी कारण इतने दिनों ब्लाग से भी दूर रहे। सोचा शायद मन बदले किन्तु मन बदला तो नहीं खराब अवश्य हो गया। दो दिन से बराबर एक ही समाचार हर तरफ अपनी चर्चा बनाये है नकली खून।
क्या वाकई हम मनुष्य स्वार्थ में इस कदर अंधे हो गये हैं कि किसी दूसरे की जान की परवाह बिलकुल भी नहीं कर सकते?
समाज में अभी तक जो कुछ चलन में है या फिर जो कुछ चलन में था उस पर कहीं न कहीं हम ही आवरण डाल दिया करते हैं। कभी कोई बहाना बना कर कभी कोई तरीका दिखा कर।
बाप के बेटी से सम्बन्ध, बेटे के माँ से सम्बन्ध, भाई के बहिन से सम्बन्ध या फिर इसी तरह के आपसी सम्बन्धों में शारीरिकता को हमने कभी विमर्श का नाम दिया कभी आदमी औरत का रोना रोया।
खाद्य सामग्री में मिलावट, देश की सुरक्षा व्यवस्था में सेंध को हमने कभी आतंकवादियों की हिमाकत कहा तो कभी पड़ोसी देशों की कारीगरी।
आम आदमी का मौत को हमने कभी भी गम्भीरता से नहीं लिया और राजनेताओं की सुरक्षा में देश के आला दर्जे के जवानों को लगा हुआ देखा।
आम आदमी को भोजन न मिलते देखा और देश चलाने वालों का फाइव स्टार होटलों में पार्टियाँ करते भी देखा।
क्या क्या बतायें कि क्या क्या देखा? अब....अब क्या देखा?
नकली खून....नकली खून....नकली खून।
अब बस सवाल कि क्या वाकई इंसानियत पूरी तरह से मर चुकी है?
क्या हम अब भी स्त्री विमर्श, दलित विमर्श के नाम पर अपना दिमाग खर्च करते रहेंगे?
क्या हम इसे भी आधुनिकता का नाम देकर भुला देंगे?
क्या यह घटना भी जाँच के नाम पर ठंडे बस्ते का शिकार होगी?
क्या......क्या.....और क्या??? सवाल....सवाल और बस सवाल....???


2 टिप्‍पणियां:

  1. क्या हम अब भी स्त्री विमर्श, के नाम पर अपना दिमाग खर्च करते रहेंगे?


    nahin "aap ko" apna dyaaan dusri baato par dena chaiyae स्त्री ki problems par nahin . !!!!

    जवाब देंहटाएं
  2. नकली खून............
    अर्थात सीधा सीधा मौत का सामान..........
    हे भगवान् !
    आदमी आदमी को खा रहा है .........
    ये रास्ता कहाँ जा रहा है ?

    जवाब देंहटाएं