09 जून 2009

भाषा के प्रति भी सजग रहना होगा हमें

हिन्दी भाषा की वैज्ञानिकता पर शायद ही किसी को सन्देह होगा। यह सम्पूर्ण विश्व की एकमात्र ऐसी भाषा है जो जैसी बोली जाती है वैसी ही लिखी जाती है और जैसी लिखी होती है वैसी ही पढ़ी जाती है। इसकी वैज्ञानिकता का एक आधार यह भी है कि इस भाषा के वर्ण क्रमिक रूप से उच्चारित होते हैं। इस भाषा के उच्चारण में आप स्वयं अनुभव करिए कि स्वरों का उच्चारण भी क्रमिक रूप से होता है और व्यंजनों का उच्चारण भी क्रमिक रूप से होता है। 

क वर्ग के वर्ण क, ख, ग, घ आप बोलकर देखिए, आपको स्वयं अहसास होगा कि इन वर्णों की ध्वनि कण्ठय है। इसी प्रकार अन्य वर्गों के वर्णों को उच्चरित करिए और हिन्दी भाषा का आनन्द लीजिए। 

च वर्ग --- च, छ, ज, झ --- तालव्य ध्वनि 

ट वर्ग --- ट, ठ, ड, ढ --- मूर्धन्य ध्वनि 

त वर्ग --- त, थ, द, ध --- दन्त्य ध्वनि 

प वर्ग --- प, फ, ब, भ --- ओष्ठय ध्वनि 

इन पाँच वर्गों के वर्णों की ध्वनियाँ क्रमशः कण्ठय, तालव्य, मूर्धन्य, दन्त्य तथा ओष्ठय हैं। इतना क्रमबद्ध उच्चारण हमारी समझ में (जितना पढ़ कर समझा है) किसी अन्य भाषा में नहीं है। 

अकसर देखा गया है कि हम हिन्दी के लिखने में मात्रा, वर्तनी आदि का उतना ध्यान नहीं रखते हैं। हमें इस बात का तनिक भी भान नहीं होता है कि हम कुछ न कुछ गलत भी लिख रहे हैं। यहाँ ब्लाग या फिर यूनीकोड में लिखी जा रही हिन्दी की चर्चा न करें तो बेहतर होगा क्योंकि यहाँ पर हिन्दी लिखने की अपनी कुछ सीमायें हैं। हम हिन्दी के गलत लेखन की बात करें आम लेखन में जहाँ हम जानबूझ कर, जल्दबाजी में या फिर नासमझी में गलती कर बैठते हैं। 

आम तौर पर हम लेखन में ‘अ’ तथा ‘इ’ के प्रयोग की भूलें, हृस्व के स्थान पर दीर्घ और दीर्घ के स्थान पर हृस्व स्वर की भूल, स्वर/मात्रा की भूल, ‘ए’, ‘ऐ’ की भूल, ‘ओ’, ‘औ’ की भूल, ‘ई’, ‘यी’ की भूल, अनुस्वार (बिन्दु) अनुनासिक (चन्द्रबिन्दु) के प्रयोग सम्बन्धी भूलें करते हैं। यहाँ इन भूलों के बारे में विस्तार से न बता कर आपके सामने कुछ उदाहरणों को रखेंगे जिनसे ज्ञात होगा कि हम कहाँ और कैसी भूलें करते हैं और उनसे कैसे अर्थ से अनर्थ होता है। 

कटक --- सेना, कंटक --- काँटा (देखा आपने बस एक बिन्दु का कमाल कैसे अर्थ बदल गया) 

आधी --- आधे से सम्बन्धित, आँधी --- तेज हवा 

रग --- नस, रंग --- हरा, पीला, लाल आदि रंग 

कही --- कहा गया हो, कहीं --- स्थान 

हंस --- पक्षी, हँस --- हँसने की क्रिया  

ये एक बहुत छोटा सा उदाहरण है इस बात को दिखाने का कि कैसे एक छोटे से बिन्दु मात्र से अर्थ का बदलाव कैसे होता है। वर्तमान में लिखने में हम अनुस्वार, अनुनासिक का ध्यान बिलकुल भी नहीं रख रहे हैं। हम तो गलती कर रहे हैं हम अपने छोटों की इन गलतियों पर भी ध्यान नहीं दे रहे हैं। धीरे-धीरे यही गलतियाँ हमारे व्यवहार में ओर लेखन को प्रभावित करतीं हैं तथा भाषा को भी विकृत करतीं हैं। कुछ वर्णों को हम भूलते जा रहे हैं और उसका कारण भी हमारी भाषा के प्रति उदासीनता है। 

आप खुद सोचिए कि कैसे एक छोटा सा दशमलव विशाल से विशाल संख्या को भी प्रभावित कर देता है। हम गणित में दशमलव के प्रयोग के प्रति बड़े ही सजग रहते हैं तो फिर भाषा के सुधार के लिए सजग क्यों नहीं रहते? भाषा हमारे विचारों-भावों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है, कल को ऐसा न हो कि हम अपनी वैज्ञानिक भाषा के तमाम सारे शब्दों, मात्राओं का विलोपन करवा कर अर्थ का अनर्थ करवा दें। आज सँभलें, अभी सँभलें। श्रीमान शास्त्री जी के आदेशानुसार शुद्ध एवं अशुद्ध शब्दों की सूची शीघ्र ही पोस्ट कर देंगे।

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपके विचारो से सहमत हूँ कि हमें अपनी हिंदी मातृभाषा के प्रति सजग और जागरुक होना पड़ेगा तभी हिंदी विश्व भाषा मंच के समक्ष अपना परचम फहरा सकेगी. आभार.

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  2. सेंगर जी यह एक अच्छा काम है जारी रखें सहयोग अवश्य मिलेगा

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