18 मई 2009

यादें कभी हंसाती हैं, कभी रुलातीं हैं

कई बार तन्हा बैठे हुए बहुत पुरानी बातें याद आतीं हैं। यादों का अपना ही मजा है। अकसर लोगों को कहते देखा जाता है कि ‘क्या बात है भूल गये क्या?’ या फिर कि ‘अब याद ही नहीं करते?’ इस याद करना/न करना और भूल जाने को लेकर ग़ज़ल गायक गुलाम अली द्वारा गायी एक ग़ज़ल का शेर हमेशा याद आता है ‘‘वो उन्हें याद करें जिसने भुलाया हो कभी, हमने उनको न कभी भुलाया न कभी याद किया।’’
क्या वाकई हम उन्हें ही याद करते हैं जिन्हें हम भुला चुके होते हैं? देखा गया है कि हम भले ही किसी को भुलायें या न भुलायें वक्त की मार हमें बहुत कुछ भुलाने को मजबूर कर देती है। इसके बाद भी बहुत से पल हमारे जीवन में कुछ इस तरह से गुजरे होते हैं कि हम अकसर उनको याद कर ही लेते हैं। ये बात भी है कि हम उन्हें भुलाये भी नहीं होते।
इन्हीं हसीन लम्हों के साये हमारे साथ सदा चलते रहते हैं जो कभी मनुष्य को मजबूत बनाते हैं कभी उसे कमजोर करते हैं। यादों का साथ यदि सुखद है तो व्यक्ति उन्हीं के साथ अपने को जुड़ा महसूस करता है। इसी तरह यदि हमारी यादों में अपने किसी विशेष की विशेष बातें जुड़ीं हैं तो वे हमारी आँखों को नम करतीं रहतीं हैं।
बचपन की बातें, माता-पिता का दुलार, बिछड़ गये यार-दोस्तों के साथ चुहल के पल हमें बैठे-बिठाये सताने को चले आते हैं। ये वो स्थितियाँ हैं जो लौट कर नहीं आतीं हैं। आज पीछे पलट कर देखते हैं तो अपने बहुत से साथियों से दशकों पुरानी बातें जुड़ी पातें हैं। फोटो एलबम में अपने बदले हुए चेहरों के साथ उनको फिर से खोजने की चाहत रहती है। कुछ ने तो अपनी दस्तक दी तो कुछ अभी भी नदारद हैं।
लोगों को कहते सुना था कि तकनीक ने, इंटरनेट ने दुनिया को छोटा कर दिया है, एक विश्व-ग्राम का रूप बन गया है। अब लगता है कि संसार अभी भी उतना ही व्यापक है या कहें कि अब और भी अधिक दूर हो गये हैं हम एक-दूसरे से। तकनीक ने हमें करीब तो किया है पर नजदीक नहीं ला सकी है। तकनीक ने समूचे विश्व को एक मुट्ठी में समेट दिया है पर भाईचारा समाप्त कर दिया है। यदि ऐसा न होता तो क्यों हमारे बिछड़े साथी अभी तक हमें न मिल सके?
आशा करते हैं कि यादों के सहारे ही अपने दोस्तों से मिलना न होता रहेगा। विश्व-ग्राम की किसी गली में उन सभी से मिलना हो सकेगा जो अभी तक नहीं मिल सके हैं।

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