16 मई 2009

भाजपा की हार या कांग्रेस की जीत या.......

रात्रि के बजे हैं 11:20 और अभी-अभी टी0वी0 छोड़ कर उठे हैं। सारे दिन किसी न किसी रूप से परिणाम जानने की चाह बनी रही। चाह इस कारण से क्योंकि हमारे शहर में विद्युत व्यवस्था का आलम यह है कि दोपहर में 12 बजे जाने के बाद रात में आठ बजे ही घर में तारों के द्वारा प्रवेश करती है। तीन-चार दिनों से आलम और भी खराब था, पता नहीं चुनाव परिणामों के बाद सरकार बनवाने-बनाने का जिम्मा इसके ऊपर भी था। दोपहर को थोड़ी सी मशक्कत इन्वर्टर के साथ करने के बाद मिनट-मिनट को तो साथ देता किन्तु पूरी तरह साथ न दे सका। परिणामतः बीच रास्ते में उसको भी बन्द करना पड़ा।
दोस्तों, रिश्तेदारों एवं अपने राजनीतिक मित्रों को फोन कर-करके परिणामों को प्राप्त करते रहे। केन्द्र में जो सरकार सोची थी वही बनी बस अन्तर हमारी सोच में यह रहा कि बिना फोर्थ-फ्रंट के बन गई। भाजपा गठबंधन की जो हालत सोची थी लगभग वही हुई। बसपा सरकार की सोशल इंजीनियरिंग लगभग फेल साबित हुई। मुलायम ने अपनी इज्जत को काफी कुछ बचाये रखने का प्रयास किया।

जहाँ तक देश की दो सबसे बड़े दल कांग्रेस और भाजपा का सवाल है तो यह तो तय था कि किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलेगा। ऐसी स्थिति में भाजपा को सहयोग मिलना आसमान से तारे तोड़ने जैसा ही होगा।

भाजपा की स्थिति के बारे में हम कल अपनी पोस्ट पर राय ले भी चुके थे। अपने शहर में भी हम इस तरह से छोटे-छोटे सर्वे विविध विषयों पर करते-करवाते रहते हैं।

यदि हम इन चुनावों के नतीजों पर नजर दौड़ायें तो यह तो आश्चर्य होता है कि कांग्रेस को एकाएक इतनी सीटें क्यों और कैसे प्राप्त हो गईं? मीडिया और ‘‘अब’’ कांग्रेस दल के कथित प्रख्यात (.........) ये शब्द नहीं लिखेंगे, रासुका से डर लगता है, बयानबाजी करते घूम रहे हैं कि राहुल गांधी के प्रचार ने इतना बड़ा उलटफेर किया। क्या वाकई ऐसा है?

राहुल का दलित के घर जाना, खाना, सोना क्या मीडिया का मिला-जुला ड्रामा नहीं था?

मीडिया के द्वारा युवराज कहते रहने की सामंती सोच का परिणाम है कि बसपा के दलित वोट बैंक में सेंध (कुछ हद तक) काग्रेस सफल रही।

कांगेस की हार के पीछे भाजपा की असफलता भी बहुत प्रभावी रही। और देखा जाये तो भाजपा की असफलता के पीछे मीडिया का, मीडिया का और सिर्फ मीडिया का ही हाथ रहा। इस कारण के अलावा और भी दूसरे कारण रहे किन्तु वे इतने प्रभावी नहीं कहे जा सकते कि भाजपा की इतनी बुरी हार होती औश्र कांग्रेस की इतनी अच्छी जीत होती।

मीडिया द्वारा भाजपा के भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप करने से लेकर आज तक सिर्फ ‘‘भेड़िया आया, भेड़िया आया’’ जैसी बातें उछाली जातीं रहीं। आम जनता ने भी चैबीसों घंटे उसी बात को सुन-सुन कर मान लिया था कि भाजपा जैसा कोई भेड़िया आया है जिससे कांग्रेस जैसा ही कोई छुटकारा दिला सकता है।

इसके अलावा भाजपा का अपनी चिरपरिचित शैली को छोड़ कर अन्य दूसरे दलों जैसा ही काम करना शुरू करना भी हार का एक बड़ा कारण है। भाजपा ने कांग्रेसी शासन से ऊब चुके लोगों के सामने स्वयं को कुछ अलग तरह से प्रस्तुत किया था किन्तु इस लोकसभा चुनावों तक आते-आते भाजपा भी अपना कांग्रेसीकरण करवा चुकी थी। आम जनता किसी भी रूप में कांग्रेस का डुप्लीकेट नहीं चाहती थी। उसने डुप्लीकेट से अच्छा सीधे-सीधे मूल कांग्रेस को ही चुनना पसंद किया।

कारण हार के इसके अलावा और भी हैं जो सीधे ऊपर भेजे जायेंगे। हाँ यह तो तय हो चुका है कि यदि भाजपा को अब भारतीय राजनीति में अपने आपको फिर साबित करना है तो उसे अन्य दूसरे दलों की तरह तुष्टिकरण की नीति को छोड़कर अपना मूल स्वरूप ही अपनाना होगा। भाजपा को स्वयं समझना होगा कि उसके मूल रूप में हिंसा कदापि नहीं है। यह स्वरूप मीडिया द्वारा एवं अन्य राजनैतिक दलों द्वारा कृत्रिम रूप से बनाया गया है।

कुछ बातों पर विचार करके फिर उभर कर आया जा सकता है क्योंकि अभी कांग्रेस में एक-दो साल बाद प्रधानमंत्री को लेकर उठापटक होगी और उस समय भाजपा के पास अवसर होगा कि वह जनता को उसके द्वारा की गई गलती को दिखा सके।

5 टिप्‍पणियां:

  1. सही बात। लेकिन सवाल यह है कि सारे ताम झाम के बावजूद भाजपा मीड़िया से तालमेल क्यों नहीं बना पायी? वो भी जो कभी विद्यार्थी परिषद में हुआ करते थे और अब एक बड़े मीड़ियाग्रुप के कर्ताधर्ता हैं?

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  2. सिर्फ चन्द भाजपा (अन्ध) भक्तों को छोड़ दें तो सभी लोग यह मानते हैं कि भाजपा का मीडिया मेनेजमेण्ट कॉंग्रेस की तुलना में ज़्यादा अच्छा है. उसके पास वक़्ता भी बेहतर हैं. फिर भी उसका नहीं जीत पाना भारतीय जनता की परिपक्वता का परिचायक नहीं है? जहां तक भेडिया आया वाली बात है, भाजपा कौन कम छद्म धर्म निरपेक्षता का राग अलापती है? तो यह शाब्दिक गोला-बारी तो दोनों हे तरफ से होती है.

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  3. bhajpa ki is karari haar ke liye sirf aur sirf atal bihari vajpayee doshi hain.

    ve agar boodhe na hote, kamzor na hote toh na aadwani ka naam PM k liye aage aata, nahi modi itne munhfat hote aur na hi bhajpa ko ye din dekhna padta.

    aadwani ki atimahatvakanksha le doobi, ab sab mil kar maatam kijiye apnee durgati ka
    is post k liye aapko BADHAI

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  4. नकारात्मक प्रचार कांग्रेस के खिलाफ भी कम नहीं था, मगर मतदाता हमेशा ही ऐसे प्रचार के विरुद्ध हो जाते हैं. यह बात जितनी कांग्रेस के लिए सही है उतनी ही भाजपा के लिए भी.

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