31 मार्च 2009

साहित्य पाठक नहीं रहे अब.....

क्या इन दिनों आम आदमी या आम जनमानस साहित्य से विरत होता जा रहा है? यह सवाल हम कभी अपने आपसे भी करते हैं और कभी-कभी उनसे भी करते हैं जो स्वयं को साहित्य से जुड़ा हुआ अथवा स्वयं को आलोचक भी बताते हैं। आपके सामने यह सवाल इसलिए उछाला क्योंकि इधर ब्लाग पर बहुत सा साहित्य और बहुत सी साहित्यिक गतिविधियाँ देखने को मिलीं।
साहित्य को लेकर इस प्रकार का सवाल इस कारण और उपजता है क्योकि हम एक साहित्यिक पत्रिका ‘स्पंदन’ का सम्पादन भी कर रहे हैं। यद्यपि लघु-पत्रिकाओं का भविष्य बहुत उज्ज्वल नहीं होता है फिर भी एक बहुत बड़ा पाठक वर्ग इन पत्रिकाओं का भी होता है।
इधर साहित्य में कुछ रुचि और फिर हिन्दी भाषा के प्रति कुछ भी थोड़ा सा योगदान देने की ललक ने हमारा ब्लाग संसार में प्रवेश कराया। ब्लाग संसार में लगातार अपने विविध ब्लाग्स के माध्यम से कुछ न कुद करते रहे और कुछ न कुछ करने की अभिलाषा है। इसी परिप्रेक्ष्य में एक रचनात्मक ब्लाग ‘शब्दकार’ बनाया था। इसी माह की 01 तारीख से इसमें रचनाओं का प्रकाशन भी कर दिया था।
रचनाओं के प्रकाशन से पूर्व हमने लोगों को ई-मेल के माध्यम से, लोगों के ब्लाग पर जाकर टिप्पणी के माध्यम से इस ब्लाग की सूचना दी। लोगों से रचनायें भेजने का अनुरोध भी किया। प्रत्युत्तर में रचनाओं की प्राप्ति भी हुई और अभी भी हो रही है। इसके बाद भी देखकर लगता है कि साहित्यिक ब्लाग गतिविधियों को संचालित करने वाले लोग भी अभी इससे दूर हैं। इसके अतिरिक्त कुछ लोग ऐसे भी हैं जो एहसान करने की तरीके से रचनाओं को प्रेषित कर रहे हैं। यह सब हमारे सवाल को और भी पुख्ता करता है।
चूँकि ब्लाग पर लगभग ग्यारह माह का समय होने को है पर देखा जाये तो अभी भी हमें वे लक्षण नहीं आ सके हैं जो ब्लाग के लिए आवश्यक हैं? हालांकि कई बार इस तरह की पोस्ट भी पढ़ डालीं जिनमें सही और उचित ब्लागिंग के बारे में बताया गया था पर शायद नाकाम रहा। ऐसा हम अपनी पोस्ट पर टिप्पणी के कम मिलने के कारण नहीं कह रहे हैं वरन् इस कारण ऐसा कह रहे हैं क्योकि जब हमने रचनात्मक ब्लाग ‘शब्दकार’ के बारे में लोगों को उनकी पोस्ट पर टिप्पणी के माध्यम से बताया तो चार लोगों ने हमें ई-मेल के द्वारा ऐसा न करने की सलाह दे डाली। इससे हमें लगा कि शायद यह सही तरीका नहीं है अपने किसी रचनात्मक ब्लाग के प्रचार करने का।
बहरहाल जहाँ तक ‘इस हाथ दे और उस हाथ ले’ वाली परम्परा से टिप्पणियों का करना होता है तो ये गलत है। यदि आपको ब्लाग पर किसी बात की सूचना देनी हो तो हमारे विचार से टिप्पणी ही सबसे अच्छा माध्यम है और यही सोच कर हमने ऐसा किया। चलिए शब्दकार तो बना लिया और उसमें नित्य ही कोई न कोई रचना प्रकाशित हो रही है। सोचा था कि इसकी सफलता के बाद अपने कुछ ब्लाग मित्रों के साथ मिलकर ब्लाग पर एक मासिक पत्रिका की शुरुआत करते। वैसे ऐसा करेगे तो पर शब्दकार को मिल रहे सहयोग को देखकर लगता है कि साहित्य प्रेमियों की संख्या कम से कमतर होती जा रही है। अब लोग अपना लिखा कुछ भी साहित्य के नाम पर आपको तो पढ़ाना चाह रहे हैं पर जो असल साहित्य है उसे पढ़ना ही नहीं चाह रहे। इसके साथ ही जो लोग अच्छा साहित्य लिख रहे हैं उसे भी नहीं पढ़ना चाहते हैं।
अन्त में फिर सवाल क्या साहित्य प्रेमियों की संख्या कम होती जा रही है? क्या टिप्पणियों के द्वारा किसी बात (जो अव्यावसायिक हो या जो जनहितकारी हो) का प्रचार नहीं किया जा सकता है? ब्लाग लेखन का सही एवं उचित दिशा-निर्देशन क्या है?

अन्त में चुनावी चकल्लस-

एक-दो नहीं कई एक हैं दौड़ में,
कोई है तन्हा किसी के साथ मेले हैं।
अपने और परायों की कोई पहचान नहीं,
प्रधानमंत्री बनने की राह में बहुत झमेले हैं।।

1 टिप्पणी:

  1. ब्लॉग लेखन एक डायरी हैं आप इस पर साहित्य रचना चाहते हैं अच्छी बात हैं पर ध्यान दे की ये केवल ब्लॉग का एक उपयोग हैं . ब्लॉग को साहितिक मंच ना माने . साहित्य पड़ने के लिये प्रिन्त्माए बहुत साधन हैं पर मुद्दों पर बात के लिये ब्लॉग हर उसके पास हैं जिस पास इन्टरनेट हैं . इस ब्लॉग को साहित्य का प्लात्फोर्म बनाना हैं तो इसको कम्युनिटी ब्लॉग बना लीजिये अपने विचारों से मिलते लोगो के साथ तभी आप की बात आगे आ सकेगी .

    ब्लॉग को केवल और केवल साहितिक पत्रिका ना समझे यही अनुरोध हैं . एक सार्वजानिक मंच हैं ये पर फिर भी इसमे ब्लॉग मालिक की अपनी निजता हैं

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