30 नवंबर 2008

जागो मानव

अपनी दीदी डॉ0 हर्षिता कुमार की लिखी कविता आपके लिए............इधर मुंबई की घटना ने इस तरह व्यथित कर डाला कि कुछ लिखने का मन नहीं कर रहा था। ब्लॉग की यात्रा की तो लगभग हर जगर मुंबई की ही घटना दिख रही है। लग रहा है कि सब इससे बुरी तरह प्रभावित हैं। बहरहाल दुःख को भूलना ही पड़ेगा............चलिए अभी हमारी दीदी की कविता का आनंद लीजिये...............

हे चिर अविनाशी घट-घट व्यापी,
तेरे पूजन को तत्पर हैं सारे दानव,
दिखते नहीं एक भी मानव।
होती जो इनमें थोड़ी सी मानवता,
ह्रदय इनका भी द्रवित होता, पसीजता।
नहीं हैं ये चिंतित या शर्मसार,
होता न कभी इनको दुःख अपार।
करते नहीं ये क्षमा याचना भी,
अपने उन अक्षम्य कार्यों की,
जो वे करते हैं प्रतिपल।
बहाने में रक्त स्वजनों का,
लगता नहीं उन्हें एक भी पल।
दीखता है उन्हें केवल स्वार्थ,
जानते नहीं वो ये यथार्थ।
कर्म उन्हों ने किए जो अब तक,
घटित हो जो उनके संग कल तब।
करेंगे किससे फरियाद,
कौन सुनेगा इनकी पुकार।
अब भी है वक्त सुधरने का,
दानव से मानव बनाए का।
सुन वाणी अंतर्मन की,
जो है भयभीत सहमी और डरी।
करो जाग्रत कि मानवता की,
हुई प्रशंसा सदैव से ही।

5 टिप्‍पणियां:

  1. आभार आपकी दीदी की इस कविता को प्रस्तुत करने का.

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  2. the poem that you have posted on right side is not by kavita please give the authors name correctly

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  3. आपकी टिप्पणी का धन्यवाद अपने लिखा की समय शोक मनाने का नही है मैंने तो बस आपना गुस्सा प्रकट किया है . एक अमेरिका है 9 \11 के बाद कोई घटना नही हुई यहाँ है की रूकती ही नही है हमारा प्रशासन और सुरछा तंत्र इतना कमजोर क्यो है की हम लचार नजर आते हैं .

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  4. आपकी टिप्पणी का धन्यवाद अपने लिखा की समय शोक मनाने का नही है मैंने तो बस आपना गुस्सा प्रकट किया है . एक अमेरिका है 9 \11 के बाद कोई घटना नही हुई यहाँ है की रूकती ही नही है हमारा प्रशासन और सुरछा तंत्र इतना कमजोर क्यो है की हम लचार नजर आते हैं .

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