21 अक्तूबर 2008

जाना हो विदेश तो राज की मदद करो

खेल चालू है, एक मदारी शेष या तो उसके जमूरे हैं या फ़िर दर्शक. मदारी अपना मजमा हर दो-चार दिन पर लगाता है और उसके जमूरे उसकी हाँ में हाँ मिलाते दीखते हैं. जमूरे मजा आयेगा, हाँ आयेगा. जमूरे, हाँ उस्ताद, हंगामा मचायेगा............मचाऊंगा. जमूरे, खेल दिखायेगा......हाँ दिखायेगा........इस तरह की आपसी जुगलबंदी होती है और फ़िर शुरू हो जाता है मदारी का डमरू पीटना. डमरू की दम-दम-दम पर जमूरा अपनी हरकतों को दिखाता है......लोगों को हंसाता है, करतब दिखाता है और अपने पेट की आग बुझाने का जुगाड़ करता है. जमूरे के करतब, मदारी का कमाल, उसके खेल मिल कर पूरे माहौल को इस कदर संवेदनशील बना देते हैं कि सभी को उनकी भूख में अपनी भूख दिखाती है और हो जाती है पैसे-रुपये की बरसात.

मदारी-जमूरे के इस खेल पर तो हम-आप-सब ताली बजाते हैं, मजा लेते हैं और चल देते हैं अपनी-अपनी राह पर लेकिन इस खेल पर कोई ताली नहीं बजा रहा है, कोई मजा नहीं ले रहा है, कोई पैसों-रुपयों की बरसात नहीं कर रहा है...............बस खेल खेलने वाले खेल रहे हैं.................परेशान होने वाले परेशान हो रहे हैं. महाराष्ट्र में हो रहे इस हंगामे को और क्या नाम दिया जा सकता है? बेक़सूर परीक्षार्थियों की पिटाई सिर्फ़ इस बात पर कि कोई दूसरे प्रान्त का आदमी उनके हक़ को मार रहा है. उत्तर भारतीय मराठा मानुष के हकों को मार रहे हैं. अभी तक तो लड़ाई इस बात की थी कि यहाँ से गए उत्तर भारतीय मराठी भाषा नहीं बोलते पर अब लड़ाई इस बात की शुरू हो गई है कि उत्तर भारतीय उनकी जगहों पर नौकरी भी करने लगे हैं.

अब इस देश में ऎसी व्यवस्था बना दी जाए जिससे व्यक्ति पाने ही प्रांत में नौकरी कर सके, अपने ही प्रांत में व्यवसाय कर सके, यदि किसी दूसरे राज्य में जाना भी पड़े तो उसके लिए पासपोर्ट और वीसा बनवा कर जाए. वैसे ये बुरा विचार नहीं है, देखा जाए तो राज ठाकरे पूरे देश को इस तरह से बाँट देना चाहते हैं कि आदमी आसानी से अपने पासपोर्ट का प्रयोग कर सके। भाई हम जैसे तमाम होंगे जो पासपोर्ट तो बनवा लेते हैं और फ़िर पूरी जिन्दगी विदेश जाने के सपने देखते रहते हैं. कम से कम हम जैसों का तो विदेश जाने, अपने पासपोर्ट पर विदेश की मुहर लगी देखने का तो सपना पूरा होगा.

इसी के साथ-साथ आजकल भारतीय समाज में अपनी बेटियों की शादी के लिए NRI लड़कों को पहली पसंद के रूप में देखा जाता है, अपने बेटे के NRI के रूप में पहचान बनाने को देख कर गर्व होता है..........जो लोग इसके अतिरिक्त भी किसी न किसी रूप में NRI होने की चाह रखते हैं राज ठाकरे उनकी भी हसरत को पूरा कर रहे हैं।

तो फ़िर हंगामा कैसा? शोर कैसा? उपद्रव कैसा? आइये जो लोग सस्ती दरों पर विदेश की सैर करना चाहते हैं........जो लोग ज्यादा खर्च किए बिना NRI होने का मजा लेना चाहते हैं वे लोग भी इस खेल में जुट जाएँ, जुड़ जाएँ. आज नहीं तो कल ये देश कई हिस्सों में बँटा तो हो सकता है कि हमारा-आपका-हम सबका नाम होगा और विदेश का मजा अलग से मिलेगा......पासपोर्ट का भी उपयोग हो सकेगा.

तो जुड़िये इस महाभियान में (महाप्रयोग की तरह) और सफल कीजिए उत्तर भारतीयों और मराठा मानुष के बीच खोदी जा रही खाई के प्रयास को..........ये सब उस समय हो रहा है जबकि इस देश की प्रथम नागरिक (महामहिम राष्ट्रपति जी) भी एक मराठा मानुष हैं...........जय मराठा, जय उत्तर भारतीय, जय भारत (देश तो अब बाद में ही आता है)

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