16 अक्तूबर 2008

राजनीति का रंग कैसा.......???

मेरा विचार है कि जब राज-काज चलाने के लिए किसी एक सुनियोजित व्यवस्था की जरूरत आन पडी होगी तभी राजनीतिक सिद्धांतों का राजनीति का जन्म हुआ होगा. इस राजनीति के पीछे भावना यकीनन समाज-सेवा, समाज-कल्याण ही रही होगी. धीरे-धीरे इस व्यवस्था को आधुनिकता का रंग चढ़ा होगा और उसी के बाद राजनीति अपनी-व्यक्तिगत मान-मर्यादा के लिए उपयोग में लाई जाने लगी. आज के राजनेताओं को देखकर, उनके लाव-लश्कर को देख कर, उनकी शान को देखा कर, उनके रुतबे को देख कर कोई भी राजनीति की तरफ़ आकृष्ट हो सकता है और लोग आकृष्ट हो भी रहे हैं.
ये शायद राजनीति के लिए अच्छा संकेत होता यदि उसमें भले, पढ़े-लिखे लोगों का आना होता, प्रतिभा-संपन्न लोगों के आने से विचार-शक्ति का निर्माण होता, नए-नए कार्यों को बढ़ावा मिलता, नई-नई परियोजनाओं को मौका मिलता और इस मौके का लाभ सैकड़ों नव युवकों को मिलता।
इधर राजनीति में नए लोगों का आना तो हुआ, प्रतिभाओं का भी आना हुआ पर आने वाले लोग इस तरह के रहे जो समाज से अधिक अपने विकास के लिए, व्यक्तिगत मुद्दों के लिए राजनीतिक दांव-पेंच चलाते रहे. वर्तमान में दो बड़े मुद्दों ने समूचे देश के जागरूक लोगों को सोचने पर मजबूर किया कि क्या अब आने वाली राजनीतिक व्यवस्था में आम आदमी को, समाज के विकास महत्व दिया जाना बंद हो जायेगा? इसका कारण स्पष्ट समझ आ रहा है। आज की राजनीति किंचित मात्र भी समाज हित में होती नहीं दिख रही है. राजनेताओं के आपस की बयानवाजी, एक-दूसरे पर लगाये जाते भ्रष्टाचार के आरोप, स्वार्थ में किए जाते काम, वोट-बैंक को पकड़ने के लिए किसी भी हद तक जाने की स्थिति आदि-आदि बताती है कि वर्तमान राजनीति कहाँ तक जा पहुँची है.
आगे मैं ख़ुद ज्यादा नहीं कहूँगा क्योंकि आप सब लोग भी सीधे-सीधे समाज से जुड़े हैं, ब्लॉग से जुड़े हैं, समाचारों से जुड़े हैं..........इस कारण सब ख़बरों की ख़बर आपको भी होती है. बस दो घटनाएं सब कुछ कहने के लिए काफी हैं.
एक तो सिंगूर का मुद्दा, जिसमें ममता के कारण टाटा को नैनो का रास्ता बदलना पडा और दूसरा काण्ड हुआ अभी उत्तर प्रदेश में जहाँ रायबरेली से रेल कोच वाली परियोजना को लगभग बंद हो जाने की स्थिति में आ जाना पड़ा।
भले ही इन परियोजनाओं में कुछ हद तक परेशानी हो सकती थी (ऐसा भी सम्भव है) पर क्या बड़े और दीर्घ लाभ के लिए, देश के लाभ के लिए कुछ वलिदान नहीं किया जा सकता? ये हम-आपको ही सोचना होगा.......नेता लोग यदि सोचने की स्थिति में होते तो वे भी राजनीति में नहीं यहाँ ब्लॉग में हमारी विचार-मंडली में होते.

3 टिप्‍पणियां:

  1. सही कह रहे है आप . अब राजनीति जनहित और देशहित के लिए नही वरन स्वहित और पार्टी हित के मद्देनजर वोट बैंक के लिए हो रही है . अच्छे आलेख हेतु बधाई .

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  2. raajneti aur kutilta men antar hai, hamare yahan makiavalian raajneti apnai jaati hai, sarkari agencian nispaksh nahi hain, anyatha kutil vyakti salakhon ke peeche hote aur raajneeti apne aap theek ho jati

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  3. राजनीति का यही हाल है. आपने एकदम सही कहा है. सुंदर लेख .

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