11 अगस्त 2008

देश, राष्ट्रगान, तिरंगा, सम्मान

देश की आजादी का जश्न मनाये जाने की तैयारियां हो रहीं हैं, देश के कुछ जाबांज चीन में पदकों के लिए अपना पसीना बहा रहे होंगे. इन सारी स्थितियों के बीच ये कैसा विषय छेड़ दिया है? शायद आपको आश्चर्य हो रहा होगा? ऐसा होना स्वाभाविक है पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि जब भी हम वर्तमान में किसी भी ऎसी स्थिति से गुजरते हैं जो हमें अतीत से जोड़ती है तब हम ख़ुद ब ख़ुद अतीत की घटनाओं को याद करने लगते हैं। कुछ ऐसा ही हमारे साथ भी हुआ. अगस्त का माह, ओलम्पिक का उदघाटन, तिरंगे का फहराना, देश का सम्मान आदि सब कुछ एक साथ मिल-जुल कर आंखों के सामने घूमने लगा.
ओलम्पिक के मार्च-पास्ट के समय महिला खिलाड़ियों की रंग-बिरंगी पोशाकों से उठती टिप्पणियों ने भी इस पोस्ट को लिखने को प्रेरित किया। यहाँ शायद बात पहनावे की न हो पर समूचे विश्व-समुदाय के सामने देश के सम्मान की अवश्य थी. बहरहाल उस समय जो हुआ उस पर सफाइयों का दौर भी चल चुका है. यहाँ बात देश, राष्ट्रगान, तिरंगे और सम्मान की हो रही है.
शुरुआत देश से करते हैं। आप किस देश की बात कर रहे हैं जिसके अनेक नाम हैं. भारत, हिन्दुस्तान, इंडिया आदि-आदि. इन नामों के अलावा भी कई सारे नाम और भी चलन में हैं. अब आ गई न दिक्कत किस नाम का सम्मान किया जाए क्योंकि आजकल तो नम को सलाम किया जाता है. इसी के साथ और भी दूसरी समस्या है, भारत माता की जय, भारत देश हमारा है.....................हो गई लिंग की समस्या. क्या है देश का लिंग (ये समस्या बहुत पहले तथाकथित बुद्धिजीवियों ने उठाई थी) क्योंकि आजकल देश में लिंग का बोलबाला है. नाम के साथ लिंग की दिक्कत ने देश के प्रति लोगों को उदासीन कर दिया है. पहले आप नाम तय कर दो, लिंग तय कर दो तब हमसे देश की बात करना.
अब आते हैं राष्ट्रगान पर, अच्छा वही राष्ट्रगान जो अँगरेज़ अफसर के लिए लिखा गया था? यदि ऐसा है तो हम क्यों उसका सम्मान करें। हम नै पीढ़ी हैं जो अपने देश को गुलाम रखने वालों के सम्मान में कहे किसी भी शब्द के प्रति सम्मान नहीं रख सकते. इसका उदहारण भी दे-दे, किसी भी समारोह में अगर राष्ट्रगान हो रहा होता है तो सबके साथ खड़े हो जाते हैं पर जब कभी ये टीवी पर या फ़िल्म में बजता है तो तसल्ली से लेते या बैठे रहते हैं. कौन खड़ा हो, क्यों खड़ा हो? देखा नहीं था आपने उस फ़िल्म शायद "कभी खुशी कभी ग़म" में राष्ट्रगान बजता है क्या कोई खड़ा होता है? नहीं न बस. वैसे एक बात बताएं, किसी गीत पर सम्मान से खडा हुआ जाता है या कि उस पर थिरका जाता है? इसी कारण से हम नै पीढ़ी के लोग अब जयमाल या हुडदंग के माहौल में राष्ट्रगान का आलाप करने लगे हैं. आप भी करो बड़ा मजा आता है.
रही बात तिरंगे की तो तिरंगा है क्या? एक खादी के कपड़े का तीन रंग का टुकडा। आप लोग यहाँ भी ग़लत हो, कहाँ हैं तीन रंग? अच्छा केसरिया, सफ़ेद और हरा, ठीक तो फ़िर नीले रंग के चक्कर को कौन याद करेगा? आपके.........? (समझ गए) वैसे सही बात बताएं तो हमें अपनी पार्टी के झंडे के सिवाय कोई और रंग याद ही नहीं. उसी का गुणगान करते हैं उसी को सलाम करते हैं. हम हैं बीजेपी के तो हम तो केसरिया और हरे रंग को याद रखते हैं बाक़ी याद ही नहीं रहते. हाँ सही कहा हम हैं सपा के तो हमने लाल और हरा याद है बाक़ी को याद कर क्या करना है? भइया हमारी पार्टी है नीले झंडे वाली तो हम उसी को सलाम करेंगे क्योंकि बाकी सारे रंग तो मनुवाद के समर्थक हैं, जय बसपा. नहीं भाई, हमारी पार्टी के तो तीन वही रंग हैं जो तिरंगे के हैं पर असली तिरंगा तो हमारा है, ठीक तीन रंग का. नीले रंग की जगह है हाथ का निशान. उसका वही रंग होता है जैसा मैडम chahtee हैं. अब इस स्थिति में हम कांग्रेस वाले अपने तिरंगे की जगह दूसरे तिरंगे को सलाम कैसे कर दे, आख़िर गद्दी का सवाल है. हम तो एक रंग लाल वाले कम्युनिस्ट हैं किसी और रंग को सलाम करना हमारे संविधान में ही नहीं है तब तिरंगे को सलामी कैसे दी जाए. क्या कहा सलाम, अरे हम कट्टर हिन्दू सलाम कैसे करें? अरे हम मुसलमान अपने खुदा के अलावा किसी को सलाम नहीं करते, तब सलामी कैसी? देखा आपने इसी तरह के विचार सभी के हैं चाहे वो किसी भी पार्टी किसी भी धर्म का हो. तब तिरंगे को अकेले ही लहराना पड़ेगा. हम नै पीढी से क्यों कल्पना करते हो कि वो इस कपड़े के टुकड़े का महत्त्व समझे?
सम्मान का अर्थ अब तक एपी लोगों की समझ में अ गया हो तो अब ये लेक्चर बंद कर दो कि नई पीढ़ी किसी का सम्मान नहीं करती। अरे हमें जो दिखेगा हम वही करेंगे. जैसा देश वैसा भेष. देखा यहाँ भी देश........कितना छोटा हो गया है हमारा देश?
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चलते-चलते
बीजिंग ओलम्पिक में मिल गया एक स्वर्ण, पूरे 28 साल बाद. बधाई. शायद ऐसे ही एक-दो लोगों से देश का सम्मान बचा है?

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